कुछ अनकही सी ............!
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एक भीना भीना सा मौसम
यादों की मुंडेर पर आ बैठा है
एक पल ख़ामोशी के आँचल में
दूजे पल बादलों के संग उड़ पड़ता है
यादों की फुहारों में जीवन बगिया
ख़िल कर ताज़गी से भर उठती है
एक कुमभलाता सा कवल अपने ही
तालाब के पानी में मुस्कुरा उठता है
ये यादें भी निर्जीव को सजीव कर जाती हैं
कभी नवप्राण नव चेतना से काया को नव उल्लास दे जाती हैं !!!!!!
$hweta
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