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ए घने साए !!!!

कुछ अनकही सी ............!
कुछ अनकही सी ............!
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आज अपनी खामोशियों में तुम्हे बसा लिया
सुबह से शाम तलक बस तेरा ही ज़िक्र किया

ज़ेहन में बिछा रहा तुम्हारा घना साया
थी तो मैं भी तुम्हारे साए में धूप का होता रहा मिला
कभी थे तुम बहुत मज़बूर कभी था मेरे तकदीर का गिला

तेरी शाखों पर थे खिले फूल कई एक बेनूर मुरझाया
तेरी झूमती डालियों ने फूलों को हंस हंस के गले लगाया
बहारों में नही आँधियों में तेरा मेरा तो बस होता रहा मिला

तुमने दरीचे को तो अपने घनी छावं के बीच बसाया
मुरझाया कवल एक रोज़ अपनी तकदीर पर मुस्कुराया
दे के दुवा ए घने साए तुझे दिल तेरी दहलीज़ से लौट आया

$hweta

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