कुछ अनकही सी ............!
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फ़ुरसत-ए-आलम में आज तुझे ही सोचा
लफ़्ज़ों में नही ढल सका रूप जो है तेरा देखा
कहा है बार-बार तुझसे तू ख़ुदा की है अनमोल सौगात
देखा है तुझे परतव-ए-खूर सा बिखरता कोई कायनात
कभी गौर से देखना अल्फाज़ मेरे मिल जाएगी कई बरसात
मेरे प्यार को देखा या नही इल्म नही हुई है तुमसे कई मुलाक़ात
कभी खुद को उलझा पाया कभी तुमको देखा कर ली तुमसे बात
कुरान की आयत कहूँ या करूँ गीता की बात तू है पाक सा इसबात (इसबात-proof )
ख़ामोशी में गुनगुनाती खामोश सी है एक सुन्दर सौगात
सूरत-ए-हाल देखा नही बस होती रही है तुनसे सीरत-ए-हाल मुलाक़ात
मेरे खोये हुए कोहिनूर मिल कर तुमसे लब खामोश हुए हैं और खो गए हैं जज्बात
$hweta
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