बरामदे में घर की सारी चीज़े बिखरी पड़ी थी ……..जले नए बर्तन, झुलसे महंगे इलेक्ट्रानिक और फर वाले खिलौने, कीमती नई कुछ जली कुछ अधजली साड़ियाँ और ढेर सारे कपडे ,गद्दे ,तमाम खुबसुरत विदेशी बैग और बिखरी थी उनके साथ बहुत सारी सुलगती यादें …!
कल दोपहर ही की तो बात है जब अचल भागता हुआ आया और कहा कि ,”दीदी आपके बेडरूम से धुवां निकल रहा है। शैली बिना किसी से कुछ कहे अपना पर्स ढूंढने लगी घर की चाबियां थी उनमे …..माँ ने पूछा क्या हुआ बेटा, बच्चे माँ को परेशान देख जानने के लिए बेचैन हो उठे आखिर हुआ क्या ? शैली ने कहा,’ घर से धुवां निकल रहा है …..शायद घर में आग लगी है इंतना कहते हुए घर से दौड़ गयी ……….
घर की लगी आग पर मोहल्ले वाले और किरायेदारों की मद्दद से काबू तो पा लिया गया था …..लेकिन अखबार वालों ने और प्रिय jano की आग तो अब तक न बुझ सकी है …..
वहां पहुचे हर किसी के मुंह से बस यही सवाल निकल रहा था ,बच्चे तो ठीक हैं न ????…बहुत नुक्सान हो गया तुम्हारा ….जो बहुत करीबी थे ..उनकी जुबान से कोई सवाल नही निकला …निकले थे तो बस आँख से आंसू ….बूढी रमिया ..उसके दिल में तो जैसे आग लगी थी ..एक एक सामान उठाती और हज़ार-हज़ार फ़साने सुनाती…गुडिया ने कभी इसे हाथ नही लगाया …इन कपड़ों के तह नही खोले ..हे राम ये तो अभी भैया की शादी में लहगा लिया था कितनी जंच रही थी ..सब जल गया … भगवन को ही ये सब नही सुहाया शायद ….
बुझे आग के धुएं में रात भी सिमटने लगी थी और पलकें खुली ही रह गयी …कब आग सूरज का गोल बन आकाश में चमक उठा समझ ही नही आया …….चाय का प्याला पापा की जिद से हाथ में तो ले ली लेकिन अखबार के छपे शब्द और तस्वीर ही जैसे घूंट बन उतर रहे थे की तभी डोर बेल बजी …कौन आया ??? फिर किसी को न्यूज़ चाहिए होगी … पापा का चेहरा फिर तमतमाया ….. तभी रमिया की आवाज़ आई भैया आये हैं दिल्ली से ..इनको कैसे पता चला ?? भैया बहुत ह नुकसान हो गया सारा न्य बर्तन भी जल गया … कल से धो रही हूँ ……. साफ ही नही हो रहा है .. कहते-कहते रो पड़ी ……
कैसे हो गया ये सब मम्मी ??? एक फोन तो किया होता ….. खैर जाने दो ..
‘जैसी नियत थी वैसा ही तो हुआ”….. रूही भी यही कह रही थी,अज्जू ने मम्मी से कहा ….
इतना सुनते ही मम्मी का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया …मम्मी ने अज्जू और रूही को बहुत बुरी तरह फटकार लगाने लगी ……. शैली ये शब्द सुनते ही ठिठक सी गई …..अब उसे लगने लगा की आग उसके घर में नही उसके बदन में लगी है ..उसकी गृहस्थी नही जली वो खुद ही जल गई है ….आज उसकी नियति इतनी ख़राब हो गई की ईश्वर उसे दंड दे बैठा …शायद ये दिन न होता तो रहा सहा भरम भी नही जलता ……
वो सोचने लगी अज्जू आज इतना बड़ा हो गया ..पत्नी की बांते इतनी सच्ची लगने लगी की आज दीदी के दिल पर क्या बीतेगी इसका भी ख्याल नही रहा …….बचपन से दोनों छोटे भाइयों को जी जान से प्यार करती …हर मुसीबत में पढाई में स्कूल में हर गलती में …. जब मम्मी ने मना कर दिया रूही से शादी के लिए …..कैसे माँ पापा दोनों को मानाने में जुटी रही …. कैसे रूही को घर के दस्तूर छोटी बहन की तरह सिखाती रही … कैसे कितनी चीजे अपने पति लड़ कर छुपा कर उसके बर्थडे पर उसके रिजल्ट पर या घर आने पर उसको उपहार में देती रही …कितनी गन्दी/ख़राब नियति थी उसकी ..कभी लेने की छह नही थी हमेशा देने के लिए बेचैन … शादी में उसके छोटा सा भी उपहार लेने से इनकार कर कितना खुबसूरत हार रूही के गले में डाला था ….. एक बार ही रूही ने कहा था … दीदी का लहंगा मैं ले लुंगी ….क्युकी दीदी तो सिर्फ एक बार ही कोई कपडा पहनती हैं…. शैली ने ख़ुशी से लाकर उसके हाथों में थमा दिया था लेकिन मम्मी ने मना कर दिया …..
शैली सोचने लगी की उसके हैण्ड सेट के खो जाने पर पापा का दिया सस्ता सा सेल फोन भी अज्जू से और रूही से बर्दास्त नही हुआ था … उसने बहाने बना कर उससे वापस मांग लिया था ..ये भी नही सोचा था की दीदी इतनी रात गए बिना जीजू के अकेले छोटे छोटे बच्चों के साथ रह रही है …. गर कोई बात हो जाय तो …… अज्जू और आदि मिलकर घर आने के सारे रस्ते बंद करवा दिए …. उसने कितने झूठे आरोप भी लगाये कितनी बेईज्ज़ती की ..कैसे गुस्से से घर छोड़ शैली निकल गई थी ……तब दीदी के कपड़ों से उन दोनों ही भाइयों को शर्म आती थी आज ये जानते हुए भी की उसके जीजू विदेश में हैं मैं यहाँ बच्चों के साथ अकेली …और जाते वक़्त अज्जू से ही कहा था अपनी दीदी का ख्याल रखना ….तुम्हारे और मा पापा के भरोसे ही ये निर्णय आसानी से ले लिया है …. मैं इतना तो जनता ही हूँ की उसे किसी की तो जरुरत नही होगी लेकिन एक मोरल सपोर्ट जरुर चाहिए और वो तुम सब से ज्यादा उसे किसी से भी नही मिल सकता ….. अज्जू तुमने क्या किया ???? मुझसे बातें करना ही बंद कर दिया मेरे नन्हे से बेटे को देख कर मुह मोड़ने लगे ….. हजारों बांतें सागर की लहरों की तरह उठने और गिरने लगी … शैली बेजान बुत सी हो गई …. समझ नही पा रही थी की ये उसका ही सगा भाई है जो इस तरह की बात …….
शैली आज बरामदे में बिखरी हुयी चीजों के बीच खुद को ही बिखरा महसूस करने लगी और सोचने पर विवस हो ही गई की सच वो बहुत अकेली है …. पिछले डेढ़ सालों से सब कुछ तो अकेली ही देख रही है …रूही के कदम पड़ते ही कहन खो गया उसके प्रति उसके अपने पापा का उसके अपने भाइयों का प्यार विश्वास निकटता ……क्या दोष रूही का है ??? या पापा का भाइयों का …नही नही ..ये सब दोष तो उसके अपने नसीब का है ….शायद अब ज़ख्मो का आखिरी पड़ाव चल रहा हो …….. शायद ईश्वर कुछ उसके भले की सोच कर ये आग उसके दिल में उसकी गृहस्थी में लगी हो ….. एक अजीब सा संतोस उसके ह्रदय में जगह बनाने लगा …….
बरामदे में घर की सारी चीज़े बिखरी पड़ी थी ……..जले नए बर्तन, झुलसे महंगे इलेक्ट्रानिक और फर वाले खिलौने, कीमती नई कुछ जली कुछ अधजली साड़ियाँ और ढेर सारे कपडे ,गद्दे ,तमाम खुबसुरत विदेशी बैग और बिखरी थी उनके साथ हजारों सुलगती यादें …! कल दोपहर ही की तो बात है जब अचल भागता हुआ आया और कहा कि ,”दीदी आपके बेडरूम से धुवां निकल रहा है। शैली बिना किसी से कुछ कहे अपना पर्स ढूंढने लगी घर की चाबियां थी उनमे …..माँ ने पूछा क्या हुआ बेटा, बच्चे माँ को परेशान देख जानने के लिए बेचैन हो उठे आखिर हुआ क्या ? शैली ने कहा,’ घर से धुवां निकल रहा है …..शायद घर में आग लगी है इंतना कहते हुए घर से दौड़ गयी ………. घर की लगी आग पर मोहल्ले वाले और किरायेदारों की मद्दद से काबू तो पा लिया गया था …..लेकिन अखबार वालों ने और प्रियजनों की आग तो अब तक न बुझ सकी ….. वहां पहुचे हर किसी के मुंह से बस यही सवाल निकल रहा था ,बच्चे तो ठीक हैं न ????…बहुत नुक्सान हो गया तुम्हारा ….जो बहुत करीबी थे ..उनकी जुबान से कोई सवाल नही निकला …निकले थे तो बस आँख से आंसू ….बूढी रमिया ..उसके दिल में तो जैसे आग लगी थी ..एक एक सामान उठाती और हज़ार-हज़ार फ़साने सुनाती…गुडिया ने कभी इसे हाथ नही लगाया …इन कपड़ों के तह नही खोले ..हे राम ये तो अभी भैया की शादी में लहगा लिया था कितनी जंच रही थी ….इसका तो इतना टुकड़ा ही बचा …….सब जल गया … भगवन को ही ये सब नही सुहाया शायद …. बुझे आग के धुएं में रात भी सिमटने लगी थी और पलकें खुली ही रह गयी …कब आग सूरज का गोल बन आकाश में चमक उठा समझ ही नही आया …….चाय का प्याला पापा की जिद से शैली ने हाथ में तो ले ली थी लेकिन अखबार के छपे शब्द और तस्वीर ही जैसे घूंट बन गले से उतर रहे थे कि तभी डोर बेल बजी …कौन आया ??? फिर किसी को न्यूज़ चाहिए होगी … शैली के पापा का चेहरा फिर तमतमाया ….. तभी रमिया की आवाज़ आई भैया आये हैं दिल्ली से ..इनको कैसे पता चला ?? भैया बहुत नुकसान हो गया सारा बर्तन सारा सामान सब जल गया … बर्तन तो कल से ही मैं और शिव दोनो धो रहें हैं ……. साफ ही नही हो रहा है .. कहते-कहते फफक पड़ी …… कैसे हो गया ये सब मम्मी ??? एक फोन तो किया होता ….. खैर जाने दो .. ‘जैसी नियत थी वैसा ही तो हुआ”….. रूही भी यही कह रही थी,अज्जू ने मम्मी से कहा …. इतना सुनते ही मम्मी का गुस्सा आसमान पर चढ़ गया …शैली की मम्मी ने अज्जू और रूही को बहुत बुरी तरह फटकार लगाने लगी ……. शैली ये शब्द सुनते ही ठिठक सी गई …..अब उसे लगने लगा की आग उसके घर में नही उसके बदन में लगी है ..उसकी गृहस्थी नही जली वो अब खुद ही जल रही है ….आज उसकी नियति इतनी ख़राब हो गई की ईश्वर उसे दंड दे बैठा …शायद ये दिन न होता तो रहा सहा भरम भी नही जलता …… शैली सोचने लगी अज्जू आज इतना बड़ा हो गया ..पत्नी की बांते इतनी सच्ची लगने लगी उसे कि आज दीदी के दिल पर क्या बीतेगी इसका भी ख्याल नही रहा …….बचपन से दोनों छोटे भाइयों को जी जान से प्यार करती …हर मुसीबत में पढाई में स्कूल में हर गलती में ….उसे याद आने लगा अज्जू के दुखी हो कर बताने पर कि मम्मी ने मना कर दिया रूही से शादी के लिए …..कैसे माँ पापा दोनों को मानाने में जुटी रही …. कैसे रूही को घर के दस्तूर छोटी बहन की तरह सिखाती रही … कैसे कितनी चीजे अपने पति लड़ कर छुपा कर उसके बर्थडे पर उसके रिजल्ट पर या घर आने पर उसको उपहार में देती रही …कितनी गन्दी/ख़राब नियति थी उसकी ..कभी लेने की चाह नही थी उसकी हमेशा देने के लिए बेचैन … शादी में उसके छोटा सा भी उपहार लेने से इनकार कर कितना खुबसूरत हार रूही के गले में डाला था ….. एक बार ही रूही ने कहा था … दीदी का लहंगा मैं लुंगी ….क्युकी आप तो सिर्फ एक बार ही कोई कपडा पहनती हैं…. शैली ने ख़ुशी से लाकर उसके हाथों में थमा दिया था लेकिन मम्मी ने मना कर दिया ….. रुवासी शैली सोचने लगी की उसके हैण्ड सेट के खो जाने पर पापा का दिया सस्ता सा सेल फोन भी अज्जू से और रूही से बर्दास्त नही हुआ था … उसने बहाने बना कर उससे वापस मांग लिया था ..ये भी नही सोचा था की दीदी इतनी रात गए बिना जीजू के अकेले छोटे छोटे बच्चों के साथ रह रही है …. गर कोई बात हो जाय तो …… अज्जू और आदि मिलकर घर आने के सारे रस्ते बंद करवा दिए …. उसने कितने झूठे आरोप भी लगाये कितनी बेईज्ज़ती की थी …कैसे गुस्से शैली को घर छोड़ गयी थी ……वो बातें भी मन में जलने लगी कि शैली के कपड़ों से उन दोनों ही भाइयों को शर्म आती थी क्युकी अब वो बहुत महंगे कपडे जो नही पहनती थी …आज ये जानते हुए भी कि उसके पति विदेश में हैं वो यहाँ बच्चों के साथ अकेली …और जाते वक़्त अज्जू से ही कहा था अपनी दीदी का ख्याल रखना ….तुम्हारे और मा पापा के भरोसे ही ये निर्णय आसानी से ले लिया है …. मैं इतना तो जनता ही हूँ की उसे किसी की तो जरुरत नही होगी लेकिन एक मोरल सपोर्ट जरुर चाहिए और वो तुम सब से ज्यादा उसे किसी से भी नही मिल सकता ….. अज्जू तुमने क्या किया ???? मुझसे बातें करना ही बंद कर दिया मेरे नन्हे से बेटे को देख कर मुह मोड़ने लगे ….. हजारों बांतें सागर की लहरों की तरह उठने और गिरने लगी … शैली बेजान बुत सी हो गई …. समझ नही पा रही थी की ये उसका ही सगा भाई है जो इस तरह की बात ……. शैली आज बरामदे में बिखरी हुयी चीजों के बीच खुद को ही बिखरा महसूस करने लगी और सोचने पर विवश हो ही गई की सच वो बहुत अकेली है …. पिछले डेढ़ सालों से सब कुछ तो अकेली ही तो देख रही है…रूही के कदम पड़ते ही कहां खो गया उसके प्रति उसके अपने पापा का उसके अपने भाइयों का प्यार विश्वास निकटता ……क्या दोष रूही का है ??? या पापा का भाइयों का …नही नही ..ये सब दोष तो उसके अपने नसीब का है ….शायद अब ज़ख्मो का आखिरी पड़ाव हो …….. शायद ईश्वर कुछ उसके भले की सोच कर ये आग उसके दिल में उसकी गृहस्थी में लगी हो ….. एक अजीब सा संतोष उसके ह्रदय में जगह बनाने लगा था और इसी विश्वास के सहरे वो खड़ी हुई और अपनी बची हुई गृहस्थी के सामानों को समटने लगी !!
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