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प्रेम पुष्प

कुछ अनकही सी ............!
कुछ अनकही सी ............!
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शब्दों के भावों में

मधुर प्रेम-पुष्प है खिला

बंधन अटूट मेरा
ईश्वर-प्रदत तुमसे है मिला
ऋतू आती है
ठहरती है
और चली जाती है
समय के चक्र पर
रंग मौसम का है चला
विरह-मिलन
वेदना-संवेदना
इस डाली के फूल
जगत के तपते
रेगिस्तान में
प्रेम रस है घुला
$hweta

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